
नीमकाथाना: जिला बनाने की मांग को लेकर 39 वें दिन भी हड़ताल जारी रहा जिसमें भूख हड़ताल पर कुरबड़ा से सूबेदार ग्यारसीलाल गुर्जर, देवेन्द्र सिंह, बलवंत यादव, उगम सिंह, बनवारी कालावत, नरेन्द्र नटवाडिया और छाजा की नांगल से दिनेश यादव, नरेश पाल, मिठनलाल, राजेश कुमार, लीलाराम, रतिराम, शिवदत ने धरने पर बैठकर सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया।
नीमकाथाना को जिला बनाने से यहां के आर्थिक और सामाजिक विकास में काफी सुधार था, और अब इसे हटाने से यहां के नागरिकों की खुशहालीपर प्रतिकूल असर पड़ेगा। उन्होने उदाहरण दिया कि कई अन्य जिलों की तुलना में नीमकाथाना क्षेत्र में प्रशासनिक कार्याे की गति बढ़ी थी, जिससे लोगो को सरकारी सेवाए आसानी से मिल रही थी। नीमकाथाना जिले के पुनर्गठन के लिए यह जनसभा एक ऐतिहासिक कदम साबित हो सकती है, क्योकि इससे स्थानीय जनता की एकजुटता और संघर्ष का पता चलता है। अब यह देखना बाकी है कि सरकार इस विरोध को किस तरह से देखती है और इस पर क्या निर्णय लेती है।
विभिन्न राजनीतिक दलो और समाज के प्रमुख व्यक्तियों ने भी अपनी आवाज उठाई और नीमकाथाना जिले को फिर से बहाल करने के लिए संयुक्त संघर्ष का संकल्प लिया। जनसभा में यह संदेश साफ था कि यह मुदा सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि जनता का अधिकार और उनका भविष्य है।
धरने पर बैठे लोगो में जोश देखा गया और उनकी एकजुटता में निरंतर बढोतरी हो रही है। लेकिन सरकार की तरफ से अभी तक कोई जवाब नहीं आया है। राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन धीरे-धीरे इस आंदोलन से जुड़ रहे है, जिससे इसका प्रभाव और भी व्यापक हो रहा है। यह समर्थन आंदोलन को मजबूती प्रदान कर रहा है और आगे भी इससे जुड़े लोग इस संघर्ष को निरंतर जारी रखने का संकल्प ले रहे है। कई प्रमुख नेता भी इस आंदोलन के समर्थन मे सामने आए है, जिससे आंदोलन को और अधिक मजबूती मिल रही है। लोग अब इस संघर्ष को सिर्फ एक पेशेवर मुद्दा नहीं, बल्कि एक जनांदोलन के रूप में देख रहे है।
राधेश्याम जांगिड़, रणजीत वर्मा, विजय यादव, रामनिवास यादव, लीलाराम, राजेश नेहरा, शिवदत, नरेशपाल यादव, श्रीराम यादव, मनोहर यादव, मुकेश अग्रवाल, बजरंग अग्रवाल, कुलदीप चेतानी, बलदेव यादव, रामजीलाल सैनी, श्रीचन्द सैनी, राजेन्द्र सिंह आर्य, मदनलाल सैनी, अशोक कटारिया ने समर्थन दिया।
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