नीमकाथाना जिला हटाये जाने के विरोध में लगातार 27 वें और 28 वें दिन भी क्रामिक भूख हड़ताल धरना जारी रहा 30 को होगा नीमकाथाना में चक्का जाम
नीमकाथाना: जिला बनाने की मांग को लेकर 27 वें दिन श्रीराम यादव, मालाराम वर्मा, शिम्भूदयाल यादव, जगदीश धोलिवाल, कालूराम धोलिवाल और 28 वें दिन अशोक शर्मा, लक्ष्मण यादव, सुल्तान यादव, भक्ताराम यादव, बद्री यादव आगवाड़ी को भूख हड़ताल पर बैठाकर लोगो लोगो माला पहनाकर धरने पर बैठया। क्रामिक भूख हड़ताल से धीरे धीरे विभिन्न संगठनों और राजनीतिक दल जुड़ रहा है और जो जोश से क्षेत्रवासीयों में नीमकाथाना को जिला बनाने को लेकर है उसको देखकर यह लगाता है कि नीमकाथाना जिला को हटाकर राज्य सरकार ने जो फैसला लिया उस फैसले के आगे राज्य सरकार को जल्द से जल्द झुकना पड़ेगा। राज्य सरकार को जल्द ही नीमकाथाना को जिला और सीकर को संभाग बनाना पड़ेगा।
श्रीराम यादव ने कहा कि नीमकाथाना को जिला बनाने से यहां के आर्थिक और सामाजिक विकास में काफी सुधार था, और अब इसे हटाने से यहां के नागरिकों की खुशहाली पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। उन्होने उदाहरण दिया कि कई अन्य जिलों की तुलना में नीमकाथाना क्षेत्र में प्रशासनिक कार्यो की गति बढ़ी थी, जिससे लोगो को सरकारी सेवाए आसानी से मिल रही थी। नीमकाथाना जिले के पुनर्गठन के लिए यह जनसभा एक ऐतिहासिक कदम साबित हो सकती है, क्योकि इससे स्थानीय जनता की एकजुटता और संघर्ष का पता चलता है। अब यह देखना बाकी है कि सरकार इस विरोध को किस तरह से देखती है और इस पर क्या निर्णय लेती है।
अशोक वर्मा ने कहा कि नीमकाथाना जिला को सीकर संभाग से अलग कर इसे फिर से जिला बनाया जाएगा। यह संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक इस फैसले को सरकार वापस नहीं ल लेती। नीमकाथाना क्षेत्र के लोगो को भरोसा दिलाया कि वे उनके साथ है और किसी भी कीमत पर इस निर्णय को पालता जाएगा।
इस जनसभा में विभिन्न राजनीतिक दलो और समाज के प्रमुख व्यक्तियों ने भी अपनी आवाज उठाई और नीमकाथाना जिले को फिर से बहाल करने के लिए संयुक्त संघर्ष का संकल्प लिया। जनसभा में यह संदेश साफ था कि यह मुदा सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि जनता का अधिकार और उनका भविष्य है।
यह स्थिति न केवल नीमकाथाना की जनता के लिए, बल्कि पूरे राज्य के लोकतांत्रिक ताने-बाने के लिए भी चिंताजनक है। जब लोग अपनी मांगों के लिए शांतिपूर्वक आंदोलन कर रहे हों और सरकार उनकी आवाज़ को अनसुना कर दे, तो यह लोकतंत्र की मूलभूत अवधारणा के खिलाफ है। एक सशक्त लोकतंत्र में जनता की इच्छाओं और समस्याओं को सरकार की प्राथमिकता बनानी चाहिए, लेकिन यहां उल्टा हो रहा है।
नेताओं की जिम्मेदारी बनती है कि वे अपने क्षेत्र की जनता की समस्याओं को उच्चतम स्तर पर उठाएं और इस जनविरोधी फैसले को सरकार के ध्यान में लाएं। मुख्यमंत्री महोदय और अन्य संबंधित मंत्रियों को यह समझना चाहिए कि यदि जनता का विश्वास टूटता है, तो यह उनके राजनीतिक भविष्य को भी प्रभावित कर सकता है। यह कोई छोटे-मोटे मुद्दे नहीं हैं, बल्कि यह सीधे-सीधे जनता के अधिकारों से जुड़ा हुआ मामला है।
विभिन्न राजनीतिक दलो और समाज के प्रमुख व्यक्तियों ने भी अपनी आवाज उठाई और नीमकाथाना जिले को फिर से बहाल करने के लिए संयुक्त संघर्ष का संकल्प लिया। जनसभा में यह संदेश साफ था कि यह मुदा सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि जनता का अधिकार और उनका भविष्य है।
धरने पर बैठे लोगो में जोश देखा गया और उनकी एकजुटता में निरंतर बढोतरी हो रही है। राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन धीरे-धीरे इस आंदोलन से जुड़ रहे है, जिससे इसका प्रभाव और भी व्यापक हो रहा है। यह समर्थन आंदोलन को मजबूती प्रदान कर रहा है और आगे भी इससे जुड़े लोग इस संघर्ष को निरंतर जारी रखने का संकल्प ले रहे है। कई प्रमुख नेता भी इस आंदोलन के समर्थन मे सामने आए है, जिससे आंदोलन को और अधिक मजबूती मिल रही है। लोग अब इस संघर्ष को सिर्फ एक पेशेवर मुद्दा नहीं, बल्कि एक जनांदोलन के रूप में देख रहे है।
भूपेन्द्र सिंह तंवर, महेश मैगोतिया, कांताप्रसाद शर्मा, बसंत यादव, बलवीर खैरवा, सुरेश खैरवा, देवेन्द्र बिजारणियां, मूलचन्द सैनी, पप्पूराम सैनी, संतोष सैनी, अनिल यादव, रमाकान्त शर्मा, सुरजमल सैनी, गोपाल सैनी, लीलाराम सैनी, महाराम ढिलाण, राजेन्द्र आर्य, शिवपाल भाटी, नन्दलाल सैनी, दिनेश कुमार सैनी, घासीराम शर्मा, बिहारीलाल, नवीन यादव, देवेन्द्र सिंह तंवर, जगदीश प्रसाद गोयल, रूडाराम कालावत, महेन्द्र कालावत, उदाराम कालावत, पांचू लाल, सुभाषचन्द कालावत, सुरेश वार्मा, जयराम यादव, रमेश कुमार ने समर्थन दिया।
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